Drishyam, ek chudai ki kahani-46

This story is part of the Drishyam, ek chudai ki kahani series

    चुदवाने को बेताब हो फिर भी मनाना है तुझे, गोरे बदन से प्यार से कपडे हटाना है तुझे।
    क़दमों में गिर कर गिड़गिडा चुदवाने को तैयार कर, लण्ड को तेरे चूत में उसीकी फिर घुसाना है तुझे।
    नंगे बदन और चूत के जलवे जब दिखाएगी वह तुझे ओ मर्द तेरे लण्ड के जलवे दिखाना है तुझे।

    मैंने उन्हें सांत्वना देते हुए कहा, “विधि के अनुसार जैसे तुमने आरती को विवाह के लिए राजी किया वैसे ही तुम्हें उसे सुहाग रात के सम्भोग के लिए भी राजी करना होगा। इसकी भी विधि है। देखिये, विवाह तुम्हें आरती से सम्भोग करने की इजाजत तो देता है पर हरेक पुरुष के लिए अपनी पत्नी या प्रेमिका का सम्मान सर्वोपरि प्राथमिकता है…

    अगर पुरुष स्त्री को भोगना चाहता है तो यह विधि विधान कहते हैं पत्नी को भी हाँ या ना कहने की अपनी स्वतंत्रता है। पुरुष को पत्नी को सम्भोग के लिए मनाना होगा। इंग्लिश में मनाने की प्रक्रिया को फोरप्ले कहते हैं। तुम आरती को मनाओ, उसे चुदवाने के लिए राजी करो। वरना वह प्यार नहीं बलात्कार हो जाएगा।”

    अर्जुन, रमेश और आरती मेरी और आश्चर्य से देखते रहे। मैंने कहा,”इस ख़ास गंद्धर्व विवाह की विधि के अनुसार, रमेश को आरती को धीरे धीरे अनावृत करना होगा। मतलब आरती के कपड़ों को एक के बाद एक उतारना होगा।और इसके लिए आरती की अनुमति या ने इजाजत जरुरी है।”

    रमेश ने कुछ झल्लाते हुए कहा, “अंकल अब तो काफी हो गया। अब इतना ही ठीक है।”

    रमेशजी की बात खत्म हो उसके पहले ही बिच में रमेश को टोकते हुए आरती ने कहा, “रमेशजी, अंकल ठीक कह रहे हैं। शादी की सुहाग रात के बाद तो मर्द जब चाहे जैसे चाहे बीबी के साथ जो जी चाहे करता है…

    उसे बीबी की इजाजत भी लेने की जरुरत महसूस नहीं होती। पर आज की सुहाग रात ही एक ऐसी रात है जिसमें अंकल की विधि के अनुसार मेरी मर्जी और अनुमति के बिना तुम कुछ नहीं कर सकते। तो रमेशजी मेरी अनुमति तो आपको लेनी ही पड़ेगी। इसके बगैर मैं आपको हाथ भी नहीं लगाने दूंगी हाँ।”

    यह कह कर आरती ने बड़ी तीखी नज़रों से अपने पहले पति अर्जुन की और देखा। अर्जुन समझ गया की अब उसकी वहाँ कोई आवश्यकता नहीं थी। वैसे पहले से ही आरती ने यह शर्त राखी थी की अर्जुन के सामने आरती रमेशजी से चुदाई नहीं करवाएगी। आरती रमेश के साथ उसकी हाजरी में आगे नहीं बढ़ेगी।

    अर्जुन वहाँ से बिना कुछ बोले, अपनी नज़रों से आरती और रमेश को “आल ध बेस्ट’ कहते हुए वहाँ से खिसक लिया और अपने कमरे में जा बैठा जहां वह बड़े आराम से उसी के लगाए हुए सी सी टीवी कैमरा द्वारा रमेश और आरती के बिच जो कुछ हो रहा था वह देख और सुन सकता था।

    रमेश आसानी से अपनी बाँहों में उठा कर आरती को बैडरूम में ले गया। साथ में वह फ़ोन भी ले गया जिसके द्वारा मैं उनको सारी रसम समझा रहा था। अर्जुन धीरे से कुछ सहमा हुआ कुछ उत्तेजना से भरा हुआ अपने दूसरे बैडरूम में चला गया।

    जैसे ही रमेश ने बैडरूम में प्रवेश किया तो मैंने देखा की अर्जुन ने उनकी सुहाग रात की पूरी तैयारी बड़ी ही सटीकता से कर रक्खी थी। पूरा पलंग गुलाब, चम्पा, चमेली इत्यादि खुशबूदार फूलों से सजा हुआ था।

    आरती की सख्त हिदायत सुनकर रमेश ने अपने हथियार डालते हुए कहा, “ठीक है, पापाजी, आज तो आपका राज है। कहिये अब क्या करना है मुझे? मुझे आरती देवी की इजाजत कैसे लेनी होगी?”

    मैं भी अब आरती और रमेश की चुदाई दिखने के लिए व्याकुल था। मैंने कहा, “अब आखिरी पंक्तियाँ दोहरा कर तुम प्रिया प्रियतम चुदाई का मजा लो। अब यहां मेरा काम ख़तम हो चुका है।” मेरी बात जब आरती ने सुनी तो उसकी आँखों में मैंने अब आने वाले जबरदस्त चुदाई के तूफ़ान के डर की परछाईं देखि।

    बड़ी ही गहरी राहत की साँस लेते हुए रमेश ने कहा, “बोलिये अंकल, मुझे क्या बोलना है?”

    मैंने कहा, “अब तुम मेरे बोले हुए श्लोक को दुहराओ। बोलो,

    हे मेरी आरती देवी सम्भोग प्रेम प्रदायिनी,अब मुझे सम्मति दीजे अनावृत मैं तुम्हें करूँ।”

    मेरे श्लोक सुन कर रमेश ने मेरी और प्रश्नात्मक दृष्टि से देखा।

    मैंने कहा, “इसका अर्थ है हे मेरी आरती देवी, अगर आप मेरी सेवा से प्रसन्न हैं तो सम्भोग के लिए मुझे आपके वस्त्र उतारने की इजाजत दीजिये।”

    रमेश ने ना सिर्फ मेरे बताये हुए श्लोक को दुहराया, बल्कि वह आरती के सामने घुटनों के बल आधा बैठ खड़ा रहा और आरती का हाथ थामे उसे चूमते हुए बड़े ही रूमानी अंदाज से मेरे बतायी हुई पंक्तियाँ उसने बड़े ही प्यार से बोलीं। तब मैंने आरती से कहा, “आरती, क्या तुम रमेश जी की पत्नी होने के नाते, उनसे सम्भोग करने के लिए तैयार हो? अगर हाँ तो तुम उन्हें अपने वस्त्र उतार ने की इजाजत दो।”

    आरती ने शर्माते हुए अपना सर हिलाकर इजाजत का इशारा किया। मैंने कहा, “अब तुम पति पत्नी या प्रेमी प्रेमिका एक दूसरे को अनावृत करो मतलब अब एक दूसरे के कपडे उतारो और एक दूसरे को खूब एन्जॉय करो। अब मैं तुम दोनों की इजाजत लेता हूँ।” यह कह कर मैं चुप हो गया।

    आरती ने वह सेल फ़ोन जिसमें मैं उनसे चैट कर रहा था उसको बिना ऑफ किये, बिना कुछ बोले पलंग के पास रखे हुए टेबल पर ऐसे सेट कर दिया जिससे उन दोनों को अच्छी तरह देख सकूँ। रमेश को ज़रा सा भी अंदेशा नहीं था की मैं उन दोनों को देख सकता था।

    रमेश ने आरती को पलंग पर लिटा दिया और आरती के बाजू में सो कर आरती के बदन के ऊपर अपनी एक जांघ रख कर आरती को अपने बाहुपाश में बाँध दिया और आरती के मुंह को उठा कर अपने होंठ आरती के होँठों से चिपका दिए।

    छुटकी सी आरती बेचारी विशालकाय रमेशजी की बाँहों में जैसे एक छोटी बेल विशाल पेड़ से चिपक कर रहती है ऐसे लिपट गयी। अपने मुंह में रमेशजी की जीभ पाकर आरती मचलती हुई रमेशजी की जीभ को चूसने लगी और अलग अलग तरीके से रमेशजी के मुंह में अपनी जीभ डालकर उनसे अपनी उत्तेजना दिखाने लगी।

    उधर अपने कमरे में बैठा हुआ अर्जुन इन सारे “दृश्यम” को बड़े चाव से देख रहा था। अर्जुन ने पलंग पर लेटे हुए अपना पाजामा निकाल दिया था और अपने लण्ड को अपने हाथ में रख कर वह बड़े ध्यान से सारे सी सी टीवी कैमरा, जो की अर्जुन और आरती की कामक्रीड़ा को देख रहे थे और रिकॉर्ड कर रहे थे, उनके द्वारा सारे “दृश्यम” वह देख रहा था।

    अर्जुन की उत्तेजना की कोई सीमा नहीं थी। कई बरसों से जो देखना चाहता था वह “दृश्यम” वह उस शाम देखने वाला था। सोलह श्रृंगार सजी हुई अपनी ही पत्नी जो बड़ी पतिव्रता होने का स्वांग कर रही थी, वह बड़ी ख़ुशी से किसी दूसरे तगड़े मर्द से उस रात खूब रगड़ने वाली थी। इतने सालों की अर्जुन की मेहनत उस रात रंग लाने वाली थी।

    आरती को चूमते हुए रमेश ने आरती के ब्लाउज के बटन अपने एक हाथ से खोलने शुरू किये। अपने प्रियतम का हाथ जैसे ही अपनी पीठ पर आरती ने महसूस किया तो वह समझ गयी की रमेशजी अब धीरे धीरे उसे नंगी करंगे।

    आरती जानती थी की पहले वह आरती का ब्लाउज और ब्रा खोल कर उसकी चूँचियों को खूब चूमेंगे, चाटेंगे, मसलेंगे और दाँत से काटेंगे। जैसे ही ब्लाउज के बटन रमेशजी ने खोले तो आरती ने स्वतः ही अपना बदन इधरउधर कर रमेशजी को ब्लाउज को निकालने में सहायता की।

    हालांकि रमेश ने आरती के स्तनों को सुबह ही अपने हाथों में महसूस किये थे और मसले भी थे पर उन्हें बंधन मुक्त देखे नहीं थे। जैसे ही रमेशजी ने आरती के ब्लाउज को निकाल फेंका तो आरती के मस्त उरोज रमेशजी की आँखों के सामने पुरे भरे हुए गोल चक्र बनी हुई गोरी एरोला के मध्य में एकदम नुकीली कड़क निप्पलोँ से सुसज्जित कुछ थोड़े से हिलते डुलते हुए नजर आये।

    उन्हें देखत ही रमेश की आँखें चौंघियां सी गयीं। इतने गोरे भरे हुए जेली के बॉल की तरह कुछ डुलते हुए स्तन मंडल इतने आकर्षक लग रहे थे की रमेशजी अपने तक़दीर को सराहने लगे की ऐसी खूबसूरत मोहतरमा उनकी हो चुकी थी और अब उस शाम से जब वह चाहें उन स्तनोँ को सेहला, चुम, चूस और काट सकते थे।

    रमेशजी ने झुक कर आरती के खरबूजों को सहलाते हुए कुछ हंसी मजाक में कहा, “अगर तुम्हारे पापाजी का बस चलता तो वह तो मुझसे इन स्तनों को चूमने के लिए भी श्लोक बुलवाएंगे।“

    आरती ने मुंह बनाकर कहा, “देखिये रमेशजी, उनके बारे में इधर उधर की बात मत कीजिये। उनका शुक्रिया मानिये की आज उन्हीं की वजह से आप मेरे साथ हो।”

    रमेश ने हँस कर आरती के स्तनोँ को मुंहमें जोश से चूमते हुए कहा, “गलती हो गयी आरतीजी माफ़ कर दीजिए।”

    आरती रमेशजी के दोनों हाथ जो आरती के स्तनोँ को जकड़े हुए हाथों को प्यार से पकड़ते हुए एक हाथ को उठा कर चूमते हुए मुस्कुरायी पर कुछ ना बोली। आरती की आँखों में और उसके होंठों पर दिख रही मुस्कान रमेशजी के रोम रोम में रोमांच पैदा करने लिए पर्याप्त थी।

    नंगी लेती हुई आरती रम्भा अप्सरा समान लग रही थी। आरती के स्तन मंडल फुले हुए गुब्बारे से गुरुत्वाकर्षण के नियम का तिरस्कार करते हुए कड़क सद्धर निप्पलोँ से सजे हुए अद्भुत सुन्दर दिख रहे थे।

    आरती ने रमेशजी के हांथों को प्यार से सहलाते हुए रमेश से पूछा, “जानते हो मेरे मुंह बोले पापाजी इस वक्त आपको क्या कहते?”

    फिर मुंह फुला कर मेरे आवाज की नक़ल करते हुए कुछ शरारत भरी मुस्कराहट होंठों पर ला कर आरती बोली, “वह कहते, रमेशजी मेरी बेटी आरती ने अपना पूरा बदन सम्भोग के लिए आपको समर्पित किया है। पर आपको यह समझना होगा की एक स्त्री के बदन का हर अंग पुरुषों के लिए मात्र संभोग का विषय ही नहीं, पूजा का विषय भी है।

    सबसे पहले स्तन मंडल। स्त्री के स्तनों को आजकल “चोली के पीछे क्या है” जैसे गानों द्वारा हीनता की दृष्टि से देखा जाता है। पर वास्तव में स्त्री जाती के स्तन ना सिर्फ पुरुष के लिए बल्कि हर जिव के लिए जीवन का आधार है, जीवन की नींव है। इन्हीं स्तनों द्वारा एक स्त्रीजाती चाहे वह इंसान हो, जानवर या कोई और जीव, अपने बच्चो को जीवन दान देती है। इनकी महिमा को नजर अंदाज नहीं करना चाहिए।“

    रमेश आरती की अदा पर वारी वारी होते हुए बोल उठा, “बापरे, आरती, आप तो कोई प्रोफेशनल अदाकारा से कम नहीं हो। आपको तो फिल्म लाइन में होना चाहिए।”

    आरती ने भी उसी शरारती लहजे में जवाब देते हुए कहा, “रमेशजी, अगर मैं फिल्म लाइन में चली गयी होती ना, तो फिर अर्जुन और आप दोनों मेरे पोस्टर ही देखते रहते। इसलिए शुक्र है की मैं फिल्म लाइन में गयी नहीं, वरना आप दोनों हाथ मलते रह जाते, मैं किसी और की बाँहों में होती।”

    रमेश ने कहा, “भले ही ऐसी कोई विधि ना हो पर मैं फिर भी मैं आज तुम्हारे स्तनों का अभिषेक करूंगा और फिर उसके स्तनामृत को खूब चाट चाट कर पियूँगा।”

    यह कह कर रमेश ने आरती के दोनों स्तनों के अरोला पर निप्पलोँ के इर्दगिर्द कुमकुम से गोल चक्र बनाया और निप्पलोँ पर कुमकुम तिलक किया। फिर उन स्तनों को दूध से धो कर साफ़ करने के बाद उन स्तनों पर शहद डाला और फिर ऐसे टूट पड़ा जैसे गिद्ध शिकार को देख कर टूट पड़ते हैं। आरती के लिए वह सुख स्वर्ग के सुख के समान था।

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