पड़ोसन बनी दुल्हन-26

This story is part of the Padosan bani dulhan series

    मैंने सेठी साहब को भाभी को चोदना शुरू करने से रोका। मेरे पास इसी काम के लिए इस्तेमाल हो ऐसे तेल की एक बोतल थी। मैं उसे बड़ी चुप्पी से याद रख कर अपने साथ मायके ले आयी थी, क्यूंकि मुझे डर था की कहीं सेठी साहब का मन करे मेरी गाँड़ मारने का तो मैं उन्हें मना कर नहीं पाउंगी और तब यह आयल बड़ा काम आएगा।

    ज्यादातर तो वह तेल जब गाँड़ मारते हैं तब इस्तेमाल करते हैं। मैंने उसमें उंगली डालकर काफी तेल निकाल कर सेठी साहब के लण्ड पर लपेटा और भाभी की चूत में भी जाने दिया। वह तेल सुरक्षित था ऐसे इस्तेमाल के लिए। जब सेठी साहब का लण्ड बहुत बढ़िया तरीके से चिकना हो गया तब मैंने सेठी साहब को इशारा किया की वह भाभी की चूत में लण्ड पेलना शुरू कर सकते हैं।

    मैं सेठी साहब का विशालकाय लण्ड भाभी की छोटी सी चूत में दाखिल होते हुए देखना चाहती थी। मैं जानती थी यह काफी कठिन होगा। पर चुदाई तो होनी ही थी, उस लण्ड को उस चूत में घुसना ही था।

    सेठी साहब धक्का मारा। सेठी साहब का लण्ड चिकनाहट के कारण थोड़ा घुसा। करीब इंच घुसा ही होगा की मुझे भाभी की चीख सुनाई दी। खैर यह तो अपेक्षित था। पर इतनी जल्दी नहीं। मैं भी जानती थी की भाभी काफी चिल्लायेगी। हो सकता है वह दर्द के मारे सेठी साहब को चोदने के लिए मना भी कर दे।

    पर ऐसा कुछ हुआ नहीं। सेठी साहब का लण्ड भाभी की चूत में घुसने लगा। भाभी चूत के त्वचा इतनी खिंच गयी की मुझे लगा की कहीं फट ना जाए। पर वाह रे स्त्री की चूत का लचीलापन! सेठी साहब का इतना तगड़ा लण्ड सेठी साहब के पेलने से ही अंदर घुसता गया। उस समय का भाभी की चूत देखने का दृश्य अद्भुत था।

    सेठी साहब का लण्ड काफी मुश्किल से अपनी जगह बना पा रहा था। शायद भाभी की चूत की त्वचा को पूरा ही खींचना पड़ रहा था। पर फिर भी चूत की त्वचा इतनी खिंच भी सकती है यह मैंने पहली बार देखा। दबी आवाज में दर्द से भाभी चीखती रही।

    वास्तव में तो भाभी ने अपनी चीखों को कामुक सिसकारीयों में बदल दिया था। इससे यह समझना मुश्किल था की भाभी ज्यादा दर्द के मारे परेशान थी या सेठी साहब के चुदाई से ज्यादा उत्तेजित। जैसे इंसान तीखा खाने के समय सिसकारियां मारता रहता है वैसे ही भाभी ने सेठी साहब के लण्ड का उनकी चूत में प्रवेश झेला।

    मैं हैरान सी सेठी साहब की भाभी की चूत की चुदाई की प्रक्रिया को इतनी करीबी से चौड़ी आँखों से देखती ही रही। अगर किसी इंसान ने चुदाई की वह प्रक्रिया जिसमें एक तगड़ा लण्ड एक सख्त चूत में बार बार अंदर बाहर जाता आता रहता है, उस चूत को अपनी ताकत से पेलता रहता है, उसे ना देखा हो तो कम से एक बार देखनी चाहिए।

    कुदरत की यह अनूठी प्रक्रिया कितनी सुरम्य है, आँखों को कितना सुकून देती है वह तो देखने से ही पता चालता है। शायद इसी लिए जिनको असभ्य भाषा में “ककोल्ड” कहा जाता है वह ऐसे ही लोग हैं जो यह प्रक्रिया को अपनी पत्नी के ऊपर किसी गैर मर्द के लण्ड के द्वारा होती हुई देखना चाहते हैं, और जिनका यह प्रक्रिया को देखते हुए कभी मन नहीं भरता।

    सेठी साहब भाभी को शुरू शुरू में बड़े ही प्यार से धीरे से चोद रहे थे। भाभी की चूत की सुरंग भी सेठी साहब के तगड़े लण्ड से धीरे धीरे सामंजस्य में आ रही थी, धीरे धीरे अनुकूल हो रही थी।

    शायद भाभी के चूत की आसपास की त्वचा भाभी की चूत की सुरंग में सेठी साहब का इतना मोटा लण्ड एडजस्ट करने में सहायता दे रही थी। हालांकि सेठी साहब का लण्ड भाभी की चूत में सारा का सारा अंदर जा नहीं पा रहा था, भाभी सेठी साहब के लण्ड की मार झेलने में धीरे धीरे सक्षम हो रही थी।

    धीरे धीरे भाभी की सिसकारियों में दर्द कम और कामुकता की मात्रा बढ़ रही थी। सेठी साहब भी कई स्त्रियों के चोदने के अनुभव के आधार पर भाभी की यह प्रक्रिया को समझ रहे थे और भाभी को यह मौक़ा दे रहे थे की जैसे जैसे समय बीतता रहे वैसे वैसे भाभी सेठी साहब के लण्ड की आक्रामकता को झेलने में ज्यादा ज्यादा सक्षम होती जाए।

    मैं हैरानगी भरी आँखों से सेठी साहब के लण्ड को भाभी की सुन्दर चूत में अंदर बाहर जाते हुए देख कर उसका आनंद ले रही थी। मुझे भाभी के चेहरे पर पलटते हुए भावावेश को देख कर अजीब सी उत्तेजना का अनुभव हो रहा था। भाभी के चेहरे पर कभी सेठी साहब के लण्ड के सख्त घर्षण के कारण उत्पन्न अनोखी उत्तेजक कामुकता का भाव तो कभी सेठी साहब जैसे तगड़े मर्द को अपने वश में कर लेने के अनोखे आत्म संतोष का भाव तो कभी सेठी साहब के तगड़े लण्ड से होते हुए दर्द का अनुभव के मारे एक तरह के आतंक का भाव का अजीबोगरीब मिश्रण भाभी के चेहरे पर चुदाई के समय मुझे देखने को मिला।

    सेठी साहब की चुदाई से हो रहे परिश्रम के परिणाम भाभी के कपाल पर पसीने की कई बिंदुएं बड़ी ही सुन्दर लग रहीं थीं। इसे देख कर मुझे कई पतियों की यह इच्छा की उनकी पत्नी किसी गैर मर्द से चुदे समझ में आ रही थी।

    सेठी साहब ने जब देखा की भाभी उनकी चुदाई की मार सहन कर पा रही है और भाभी का दर्द पहले की मात्रा में काफी कम हो चुका है तब सेठी साहब ने भाभी की चूत में अपना लण्ड पेलने की फुर्ती थोड़ी तेज कर दी।

    मैं भाभी की चूत के अंदर बाहर होते हुए सेठी साहब के चिकनाहट से भरे लण्ड को देख रही थी और साथ साथ में भाभी की चूत जैसे सेठी साहब के मोटे लण्ड को अंदर की और चूस कर निगल रही हो ऐसे होते हुए अनूठे दृश्य को देख मेरे जहन में भी अजीब सी उत्तेजना हो रही थी। मैं मेरे पति का धन्यवाद करना चाहती थी जिनके कहने से मैंने भाभी को हमारी चुदाई में शामिल किया जिसके कारण मुझे यह अनूठा दृश्य देखने को मिला।

    जैसे जैसे सेठी साहब ने चोदने की फुर्ती बढ़ाई तो शायद भाभी के दर्द की मात्रा फिर से बढ़ने लगी होगी। भाभी की कराहट में उसकी झलक मुझे दिखाई दी। पर सेठी साहब पर अब चुदाई का जूनून और उनके लण्ड का जोश सवार था।

    पहले की तरह अब सेठी साहब ने भाभी के कराहने पर ध्यान ना देते हुए चुदाई की फुर्ती जारी रखी। यह भी कहना सही नहीं होगा की भाभी सिर्फ दर्द के मारे ही कराह रही थी। भाभी को भी सेठी साहब के फुर्ती से चोदने से ज्यादा ही उत्तेजक भाव का अनुभव हो रहा था। भाभी ने जब आँखें खोलीं और मेरी भाभी से आँख मिली तो मैंने भाभी को मेरे होँठ पर उंगली की पट्टी बांधते हुए इशारा किया की वह कराहना बंद करे और चुदाई को ज्यादा से ज्यादा एन्जॉय करे।

    भाभी मेरे इशारे को फ़ौरन समझ गयी और मैंने सूना की भाभी कराहटें दर्द में से कामुकता के सुर में बदल गयीं। भाभी ने अपने बदन को काममें लेते हुए उसके मचलने से सेठी साहब को यह सन्देश देना शुरू किया की वह सेठी साहब की चुदाई एन्जॉय कर रही थी। जो मर्द चुदाई करता है उसे चुदाई और उत्तेजना और आनंद का एहसास तब होता है जब उसकी महिला साथीदार उसे यह सन्देश दे की वह उसकी चुदाई में बड़े आनंद का अनुभव कर रही है।

    मैं भी उस समय भगवान का एक कमाल और उसकी स्त्री शरीर और स्त्री के मन की अद्भुत रचना देख और महसूस कर रही थी। मैं जानती थी की भाभी को सेठी साहब की जोश भरी चुदाई से बड़ा ही दर्द का अनुभव हो रहा था पर अपने प्रियतम को खुश करने के लिए वह अपनी कराहटों में कामुकता का सुर सूना कर अपने प्रियतम को आनंद दे रही थी।

    मैंने भाभी के हाथ को कर उन्हें कुछ मानसिक सहायता देने का प्रयास किया। भाभी ने तब मेरा हाथ थामा और उसे दबाने लगी जिससे मैंने अनुभव किया की भाभी काफी दर्द झेल रही थी। पर जैसे जैसे समय गुजरता गया, भाभी के हाथ की पकड़ की सख्ती कम होती गयी और उसकी जगह भाभी की उंगलियां मेरे हाथ को सहलाने लगीं। इसका मतलब यह था की भाभी अब सेठी साहब की चुदाई एन्जॉय करने लगी थी। भाभी के मन के उन्माद का कयास उनकी उँगलियों के खेलने के ऊपर से मैं लगा रही थी।

    मैं यह भी देख पा रही थी की भाभी का तन सेठी साहब के लण्ड को जवाब देते हुए सही लय में ऊपर की और उछल कर सेठी साहब की चुदाई को एक सही जोड़ीदार की तरह मैच कर रहा था। सेठी साहब ने एक एक बार मेरी नज़रों से नजरें मिला कर ऐसा इशारा किया जैसे वह भाभी जी को चुदवा ने के लिए लाने के लिए मेरा शुक्रिया कर रहे हों।

    मैंने भाभी की इस चुदाई के दरम्यान एक अजीब बात महसूस की। हालांकि मैं जानती थी की भाभी को सेठी साहब की चुदाई के कारण असह्य दर्द महसूस हो रहा था, पर आश्चर्य इस बात का था की उसी चुदाई के दरम्यान भाभी बार बार झड़ती रहती थी। मैंने भाभी को सेठी साहब की चुदाई की शुरुआत में कम से कम तीन बार झड़ते हुए महसूस किया। जब सेठी साहब ने चुदाई की फुर्ती बढ़ाई और जब भाभी भी चुदाई का आनंद लेने लगी तब तो भाभी पता नहीं कितनी बार झड़ गयी।

    औरत का मन बड़ी ही अजीबो गरीब विषमताओं से भरा हुआ होता है। मैं भी तो एक औरत ही थी ना। जब मैंने देखा की सेठी साहब और भाभी एक दूसरे से चुदाई में इस तरह खो गए थे की वह मुझे भी भूल गए थे तब मेरे मन में उदारता की जगह इर्षा ने ले ली।

    अरे भाभी अकेली सेठी साहब की चुदाई के मजे कैसे ले सकती है? सेठी साहब की चुदाई की पहली हकदार तो मैं ही थी ना? यह तो मेरी उदारता का नतीजा था की मैंने भाभी साहेब को सेठी साहब से पहले चुदवाया। पर क्या किया जाए?

    सेठी साहब और भाभी इस तरह चुदाई में तल्लीन थे की उनको इस हालात में छेड़ना और उनकी इस तरह उन्नत चुदाई में बाधा डालना कोई पाप से कम नहीं। जब कोई मर्द और औरत चुदाई में मग्न हों तो उनकी चुदाई में विघ्न डालने जैसा कोई बड़ा पाप नहीं है यह मैं जानती थी।

    भाभी को सेठी साहब की चुदाई में इतना मजे लेते हुए देख मेरा मन जल उठा। पर क्या करती? मैं चुपचाप उन दोनों की चुदाई देखती रही। जब मुझसे न रहा गया, तब मौक़ा पा कर मैंने सेठी साहब की गाँड़ पर एक जोरदार चूँटी भरी। भा

    भी की चुदाई जारी रखते हुए सेठी साहब ने एक आँख खोल कर देखा तो मेरी क्रोधित नजर को देखा। मेरी आँखों का भाव पढ़ कर ही वह समझ गए की मेरी इर्षा मेरे सद्भाव पर हावी हो रही थी। मैं चाह रही थी की सेठी साहब भाभी को छोड़ मुझे चोदे। सेठी साहब ने मुझे आँख मार कर इशारा किया की वह जल्द ही मेरी इच्छा पूरी करेंगे।

    तब सेठी साहब ने मेरी भाभी के बदन पर कुछ झुक कर उनके होंठों से अपने होंठ मिलाये। भाभी भी सेठी साहब की चुदाई से कुछ थकी हुई लग रही थी। सेठी साहब की चुदाई को झेलना कोई आसान बात नहीं थी। भाभी ने पहली ही इन्निंग्स में बड़ा अच्छा परफॉरमेंस दिखाया यह मुझे मानना पडेगा। सेठी साहब और भाभी प्रगाढ़ चुम्बन में लग गए। मैं बड़ी ही बेचैनी से उनके अलग होने की प्रतीक्षा करती रही।

    कुछ समय बाद सेठी साहब ने बड़े प्यार से भाभी के कानों में कहा, “तुम थक गयी हो। चाय पी जाए।”

    भाभी ने कहा, “आपका तो अभी छूटा नहीं। आपको भी तो अपना माल छोड़ना है।”

    सेठी साहब ने बड़े प्यार से भाभी को समझाते हुए कहा, “अभी तो पूरी रात बाकी है। पर भाभीजी आप कमाल हैं। क्या आपको अच्छा लगा?”

    भाभी ने भी सेठी साहब से शर्माते हुए कहा, “मैं ननदसा का जितना शुक्रिया करूँ कम है। आज के जैसा अनुभव मुझे पहले कभी नहीं हुआ। आप बहुत अच्छा करते हैं।”

    सेठी साहब ने इस बार भाभी का सर चूमते हुए अपना लण्ड भाभी की चूत में से निकालते हुए कहा, “भाभी जी अब हम से शर्माना छोड़िये। जो कहना है साफ़ साफ़ शब्दों में कहिये। बोलिये की अच्छी चुदाई हुई। बोलिये भाभीजी।”

    भाभी ने शर्माते हुए कहा, “सेठी साहब शर्म आती है, ऊपर से ननदसा भी यहां है।”

    मैंने भाभी के कूल्हे पर एक हलकी सी चपेट मार कर मुस्कुराते हुए कहा, “भाभीजी, चुदवाते हुए शर्म नहीं आयी तो बोलने में क्या शर्म? बोलो जो बौलना है।”

    भाभी जी ने आँखें निचे गाड़ते हुए कहा, “सेठी साहब बहुत अच्छा चोदते हैं। मुझे तुम्हारे भाई ने इतने सालों में ऐसा कभी नहीं चोदा।”

    मेरे मुंह से निकल गया, “भाभीजी अभी देखती जाओ। अभी तो सेठी साहब का एक बार भी छूटा नहीं है। अभी तो पूरी रात बाकी है।”

    सेठी साहब ने हम दोनों की चूँचियों को अपने एक हाथ से मसलते हुए कहा, “हे महिलाओं, अगर आपकी मेहरबानी हो तो हम चाय का एक प्याला पियें।”

    भाभी ने कुछ शर्माते हुए और कुछ हिम्मत दिखाते हुए सेठी साहब को चूँचियों को दबाते हुए की और इशारा करते हुए कहा, “सेठी साहब, रुको, दूध रखा हुआ है। इनमें से दूध निकालने की जरुरत नहीं है। वैसे भी इन में अब दूध नहीं बचा है।”

    मैंने भाभी से कहा, “भाभी सा, देखते जाओ। सेठी साहब का कोई भरोसा नहीं। कहीं सेठी साहब ने ठान ली तो देखना कहीं इन्हें चूसते हुए इन में से भी दूध निकाल ना लें।”

    भाभी ने फटाफट आगे बढ़ कर सेठी साहब का हाथ लगा कर आननफानन में एक साडी अपने ऊपर लपेट ली और चाय बनाने में लग गयी।

    तब सेठी साहब ने उसे रोका और बोले, “इतने सुंदर बदन को छिपा क्यों रही हो? यह सिर्फ चुदाई के लिए नहीं, दर्शन के लिए भी है।” सेठी साहब ने भाभी की लपेटी हुई साडी छीन कर भाभी को नंगी कर दिया।

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